भारत और चीन एशिया की दो महाशक्तियां हैं। हाल ही में 9 दिसंबर को, 300 से ज्यादा चीनी सैनिकों ने अरुणाचल के तवांग सेक्टर के यांग्त्से क्षेत्र में LAC को पार करने की कोशिश की है। आज हम, भारत-चीन विवाद के इतिहास और आखिर क्यों चीन त्वांग पर कब्जा करना चाहता है, यह जानने की कोशिश करेंगे। चीन के अलावा म्यांमार, बांग्लादेश, भूटान, नेपाल, अफगानिस्तान और पाकिस्तान के साथ भारत अपनी बाउंड्री शेयर करता है। साल 2020 में 15 और 16 जून को भारत और चीन में एक बड़ा संघर्ष दिखा, जब हमारे 20 सैनिक लद्दाख में शहीद हो गए। यह पिछले चार दशकों में अब तक का सबसे घातक टकराव था। अरुणाचल प्रदेश के बारे में शायद आपको पता हो कि अरुणाचल पहले, सीधे दिल्ली से प्रशासित था, और 1987 में इसे अलग राज्य बनाया गया था। भारत चीन के साथ 3488 किमी सीमा साझा करता है, लेकिन चीन दावा करता है कि LAC सिर्फ 2,000 किलोमीटर है। भारत चीन विवाद का कारण यह है कि दोनों ही देश लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर इन्फ्रास्ट्रक्चर के निर्माण के लिए कॉम्पिटिशन और एक-दूसरे को रोकने की कोशिश कर रहे हैं। भारत और चीन की बाउंड्री, 3 पार्ट्स में डिवाइड है: सरहद का पहला हिस्सा Western Sector है, जिसमें जम्मू से कश्मीर और झिंजियांग से तिब्बत के बीच की सीमा शामिल है। दूसरा मिडिल सेक्टर, जिसमें तिब्बत, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड की बाउंड्री आती है। तीसरा पूर्वी क्षेत्र, जहां पर चीन 90,000 वर्ग किमी से ज्यादा एरिया पर भारत के कंट्रोल को नहीं मानता है और खासकर अरुणाचल प्रदेश में।
भारत और चीन के बीच अब तक 3 सैन्य संघर्ष हुए हैं, 1962 का चीन-भारतीय युद्ध, 1967 में नाथू ला और चो ला में सीमा संघर्ष और 1987 में सुंडोरोंग चू गतिरोध। गलवान घाटी विवाद के बाद, जनवरी 2021 में एक बार दोबारा, दोनों देशों की सेना में संघर्ष हुआ। हालांकि साल 2017 में भी डोकलाम को लेकर भारत-चीन के बीच काफी विवाद हुआ था, जो 70-80 दिन चला था। चीन हमेशा से त्वांग को हथियाना चाहता है, इसके कई कारण हैं। चीन तवांग मोनास्ट्री को पाना चाहता है, क्योंकि, यह बुद्धिज्म की दुनियाभर में दूसरी सबसे बड़ी मोनास्ट्री है। तवांग में तिबेतियन कल्चर देखने को मिलता है, और इसी वजह से चीन क्लेम करता है कि तवांग तिब्बत का पार्ट है। 1959 में चीन ने तिब्बत के लोगों पर बहुत अत्याचार किए, और दलाई लामा भाग कर भारत आए थे। यह भी चीन की नाराजगी का बड़ा कारण है। एक जियोग्राफिकल फैक्टर यह भी है कि तवांग के जरिए भारत पर मिसाइल अटैक आसानी से किया जा सकता है, और यही वजह है कि भारतीय सेना आसानी से चीनी सैनिकों पर नजर रख पाती है। हालांकि ब्रहमपुत्रा नदी पर चीन ने कई बांध बना रखे हैं, ऐसे में चीन जब चाहे अरुणाचल में फ्लड ला सकता है, इसलिए भारत के लिए यह क्षेत्र और इसका विवाद बहुत अहम है।
हिस्ट्री की बात करें, तो 08 सितंबर 1962 को, चीनियों ने थगला रिज को पार किया और तब प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने "चीन को थगला से बाहर फेंकने" का निर्देश दिया था। लेकिन 20 अक्टूबर 1962 को, चीन ने भारत पर हमला किया। एक महीने के युद्ध और भारत की हार के बाद, 21 नवंबर को चीन ने संघर्ष विराम की घोषणा की और उत्तर में 20 किलोमीटर पीछे चला गया। लेकिन इस युद्ध की वजह से भारत ने चीन के हाथों 43,000 वर्ग किलोमीटर area खो दिया। साल 2016 में चीनी सेना ने 273 बार भारतीय सीमा में घुसपैठ की थी, जो 2017 में बढ़कर 426 हो गई। और 2018 में 326 थीं। हम आपको बताना चाहेंगे कि साल 1996 के एक समझौते के बाद, सीमा के पास बंदूकों और विस्फोटकों के इस्तेमाल पर रोक लगा दी गई थी, इसलिए सेनाएं विवादों के बावजूद वैपन्स के यूज से बचती हैं। भारत चीन सीमा विवाद, सालों पुराना है। दोनों देशों को अपनी बाउंड्री, स्पष्ट नहीं है और दोनों के अपने-अपने दावे हैं। जैसे पश्चिमी सेक्टर में अक्साई चिन पर, भारत अपना दावा करता है। और चीन अरुणाचल को साउथ तिब्बत क्लेम करता है। जाहिर सी बात है, जब तक दोनों देश अपनी-अपनी सीमाओं को लेकर स्पष्ट नहीं होंगे, तब तक ऐसे विवाद होते रहेंगे। भारत चीन के बिजनेस और रेवेन्यू का एक बड़ा जरिया है और चीन से ही भारत सबसे ज्यादा आयात करता है। देश की बढ़ती आबादी चीन के लिए एक बड़ा मार्केट है ऐसे में अगर चीन, भारत के साथ विवाद जारी रखता है, तो उसे बिजनेस देने का देश के पास कोई खास कारण नहीं है। दोस्ती और दुश्मनी एक साथ नहीं चल सकती।